देवभूमि उत्तराखंड प्राचीन काल से ही आस्था व कौतुहल का मुख्य केन्द रहा है। जनपद टिहरी गढ़वाल की चन्द्रबदनी पट्टी में मां भगवती का पौराणिक मन्दिर है जिसको चन्द्रबदनी के नाम से जाना जाता है। यह सिद्धपीठ देवप्रयाग–टिहरी मोटर मार्ग तथा श्रीनगर–टिहरी मोटर मार्ग के मध्य स्थित चन्द्रकूट पर्वत पर है।
यह चोटी बांज‚ बुरांस‚ काफल तथा देवदार आदि के वृक्षों से घिरे हुए क्षेत्र में पड़ती है। यहां की जलवायु अत्यधिक ठंडी तथा स्वास्थ्यवर्धक है। यहां पहले नरबली‚ तत्पश्चात पशुबली दी जाती थी। किन्तु कुछ समय पहले यह बन्द कर दिया गया‚ जिसका श्रेय श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के स्वामी स्वo मनमथन जी को तथा स्थानीय लोगों को जाता है। अब यहां पर सात्विक विधि–विधान श्रीफल‚ छत्र‚ फल‚ पुष्प आदि द्वारा पूजा की जाती है।
इस शक्तिपीठ की स्थापना के सम्बन्ध में कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने हरिद्वार(कनखल) में यज्ञ किया। दक्ष की पुत्री सती ने भगवान शंकर से यज्ञ में जाने की इच्छा व्यक्त की लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें वहां न जाने का परामर्श दिया। मोहवश सती ने उनकी बात को न समझकर वहां चली गयी। पिता के घर में अपना और अपने पति का अपमान देखकर भाववेश में आकर उसने अग्नि कुंड में गिरकर प्राण दे दिये। जब शिवजी को इस बात की सूचना प्राप्त हुई तो वे स्वयं दक्ष की यज्ञशाला में गये और सती के शरीर को उठाकर आकाश मार्ग से हिमालय की ओर चल पड़े। वे सती के वियोग से दुखी और क्रोधित हो गये जिससे पृथ्वी कांपने लगी।
अनिष्ट की आशंका से भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों को छिन्न–भिन्न कर दिया। भगवान विष्णु के चक्र से कटकर सती के अंग जहां–जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। जैसे जहां सिर गिरा वहां का नाम सुरकण्डा पड़ा। कुच(स्तन) जहां गिरे वहां का नाम कुंजापुरी पड़ा। इसी प्रकार चन्द्रकूट पर्वत पर सती का धड़(बदन) पड़ा इसलिये यहां का नाम चन्द्रzबदनी पड़ा।
यहां पहुंचने के लिये देवप्रयाग–टिहरी मोटर मार्ग पर लगभग २८ किमी आगे एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा जामणीखाल पड़ता है जहां से ऊपर की ओर एक कच्ची सड़क निकलती है। यहां से ग्राम जुराना तक एक घण्टे का सफर बस में तथा वहां से मन्दिर के लिये लगभग एक किमी का पहाड़ी रास्ता है। कहीं पहाड़ पर सीधी चढ़ाई है तो कहीं पथरीले और घने बांज‚ बुरांस के जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है। लगभग आधा घण्टे की इस पैदल यात्रा के पश्चात मां भगवती के मन्दिर मे पंहुचा जा सकता है।
जंगल में पशु–पक्षीयों की ध्वनियों से वातावरण संगीतमय बना रहता है। नित्य आरती‚ मंत्रोचारण‚ घृत दीपक प्रज्वलित करने से यहां का वातावरण दिव्य बना रहता है। यहां की स्वास्थ्यप्रद जलवायु शीतल पवन व मधुर शीतल जल मन को प्रफुल्लित करता है।
चन्द्रबदनी(मां भगवती का पौराणिक मन्दिर)